इस स्थिति मे समाजवाद किसानो के साथ हुए आर्थिक अन्याय को भूलकर या नजरअंदाज कर, समाजवाद के लोकतंत्र मे राजतंत्र को स्थापित करने के लिए शब्दो का प्रपंच रचता है और लोगो के समाजवादी चेतना को उकेरकर, उन्हे ब्लैकमेल करता है, तब वही समाजवादी रूपी राजतंत्र के समर्थक यह भूल जाते हैं कि समाजवाद जो साम्यवाद का लक्ष्य है और इसी लक्ष्य के लिए भगत सिंह ने कहा था कि यह आजादी नही सत्ता का स्थानांतरण है क्योंकि जब तक देश की सत्ता खेत खलिहान और मजदूर तक नही पहुंचती तब तक यह आजादी अंग्रेजो के स्थान पर भारतीय अंग्रेजो का जश्न मात्र है!
और आज भगत सिंह की वह बात समाजवाद पर लागू हो रही है कि जब खेत खलिहान ही राजतंत्र की स्थापना करे तब यह समाजवाद हमारा नही बल्कि उन्ही काले अंग्रेजो की संरचना है जिसमे वे अपने सत्ता को बचाने के लिए अपने भरोसेमंद को सत्ता स्थानांतरित कर गुलाम वंश के राजतंत्र की स्थापना करते हैं, हां यह वही समाजवाद है जो जिस पर गजनवी ने गुलाम वंश को खाशमदा बनाया था और सत्ता चलाया था और आज समाजवाद उसी कुतबुद्दीन एबक के गुलाम वंश की तरह है जिसका नियंत्रण लुटेरा गजनवी कर रहा था और आज वही लूट पूंजीवाद कर रहा है जिसका नियंत्रण सामंतवादी ताकतों के हाथो में है!
इसलिए यह खेत खलिहानों का समाजवाद नही है यह तो गुलाम वंश का पूंजीवादी समाजवाद है वर्ना किसान की फसल सडको पर न पडी होती और उसकी लहसुन 60 पैसा किलो न बिकी होती और न ही बिचौलिए उसी लहसुन को 200 रू किलो बेचते! यह पूंजीवादी गुलाम राजतंत्र का समाजवाद, 'किसानो की आत्महत्या पर मौन है और किसान आत्मसम्मान के लिए आत्महत्या करने के लिए मजबूर है'!!
अब खेत खलिहानों की लडाई इसी पूंजीवादी गुलाम वंश के समाजवादी राजतंत्र से है क्योकि यह खेत खलिहान की आड़ मे सामंतवाद को मजबूत ही कर रहा है! यह बडी लडाई है क्योंकि इसके बाद पूंजीवाद खुद ही रोड पर आ जाएगा
यह अपनो की महाभारत है, जिसमे कृष्ण ही पूंजीवाद के साथ खडा है और खेत खलिहान का कवच राष्ट्रवाद व समाजवाद की आड मे नोच नोच कर उकेला जा रहा है, घायल कर्ण रूपी खेत खलिहान कराह रहा है क्योंकि उसके वध की पटकथा मे कृष्ण भी सहभागी है! बाकी #आदिकिसान कितना सजग है इस बौद्धिक युद्ध के लिए यह देखने वाला होगा क्योंकि जो तटस्थ है वह ज्यादा पापी है!
जोहार
आदिकिसान संघ
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