अफस्पा: इस हाथ दे उस हाथ ले
आदिवासी-कबाइली, कामगार-किसान वर्ग के युवाओं को "आर्म्ड-फोर्स-स्पेशल-पावर्स-एक्ट (अफस्पा) कानून' के तहत आतंकवादी नक्सलवादी, उग्रवादी, माओवादी आदि घोषित कर मारा जाता है और जेलों में ठूंसा जाता है, चाहे वे किसी भी समुदाय के बच्चे, युवक-युवतियां हों।मगर कानून में अघोषित रूप से' मनुस्मृति के नियम-कानून के अनुसार मुनिजैन-मनुब्राहमण समुदाय के लोगो व इनके समाज के धर्माधिकारी, संघाधिकारी, मठाधीश, वेदाचार्य, शंकराचार्य, धर्मगुरु पुंजिपतियों को विशेष छूट दी गयी है।
अफस्पा कानून सन 1958 में अंतर्राष्ट्रीय संघ के दबाव में बनाया गया था। जिसके तहत किसी भी आदिवासी कबाइली व कामगार व किसान वर्ग के लोग जो स्वयं को क्षत्रिय राजपूत कहने लगे हैं अपने आपको राजाओं का वंशज बताने लगे हैं उनको आतंकवादी नक्सलवादी उग्रवादी माओवादी आदि घोषित मारा जाता है और शक या बिना शक के दायरे में आने वाले बच्चों युवक-युवतियों मारा व जेलों में ठूंसा जाता है।
इस कानून से पहले बिना अपराध और बिना कोई कारण इन्हें बेधडक मारा व जेलों व कब्रों में ठूंसने के अलावा आग में जलाया जाता था |अफस्पा कानून के तहत किसी भी कारण से मारे गये आदिवासी कामगार किसान जाति के युवक-युवतियों व बच्चों के लिए सुरक्षाबल के अधिकारी किसी भी रुप में इसके लिए कोई जिम्मेदार नही है और ना ही उनसे किसी तरहं की पूछताछ भी नही की जा सकती।
जम्मू-कश्मीर के मूलवासी कबाइली यानि आदिवासी एवं भारत के किसी भाग के आदिवासी किसानों की जर-जंगल-जमीन व खनिज-सम्पदाओं पर कब्जा करने विभिन्न धर्मगुरूओं, संस्थाओं, संघ व पुंजिपतियों हेतु जमीन हडपने में अफस्पा कानून का विशेष सहयोग रहा है।
देश के विभिन्न दस राज्यों में वहाँ के आदिवासी-कबाइलियों, कामगार व किसान जाति के लोगों की सुरक्षा हेतु धारा 370 और धारा 371 के तहत इन्हे विशेष अधिकार दिये गये हैं, वहीं इसके विपरीत इन्हें नेस्तनाबूद करने, उजाड़ने मारने, जेलों में ठूंसने और इनकी जर-जोरु-जमीन जंगल-खनिज सम्पदाओं को हडपने के लिए, अफस्पा कानून भी बनाया गया है। सामान्य भाषा में इसे इस-हाथ-दे और उस-हाथ-ले कहा जाता है।
साभार :
अपौरुषेय-बाणी
बाबा-राजहंस
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