नाईल-नदी की उपजाऊ जमीन में इजिप्ट की सभ्यता का विकास हुआ। इजिप्ट के लोगों को पूजारियों ने इसीस ओसीरिस नामक देवताओं के अंधविश्वास में इस कदर डूबो दिया गया कि इजिप्ट वासी अपनी मौजूदा जिंदगी को क्षणिक तथा मरने के बाद की कायम जिंदगी के लिए "तैयारी करने का समय" मानकर पूजारियों के इशारों पर नाचने लगे।
इजिप्ट वासियों का मानना था कि मरने के बाद की जिंदगी के लिये शरीर का होना भी जरुरी है। इसी अवधारणा के कारण लाश को ममी बनाकर सुरक्षित रखने लगे।
ईसा-पूर्व बीसवीं शताब्दी में अपनी आजीविका की तलाश में भटकते हुए यहूदियों को इजिप्ट के निवासियों ने मदद दी और यहूदी इजिप्ट के गोशेन क्षेत्र में बस गये।
Source: (Hendrik-Von-Loon, story of mankind)
यहूदी कभी-भी एक राष्ट्र के रुप में नही बन पाए थे। इसलिए वे लम्बे समय तक 12 या इससे अधिक जनजातियों के रुप में इकट्ठे रहे। यहूदी किसी राज्य देश के नियम के अनुसार नही बल्कि अपने कबीले के नियम के अनुसार व्यवहार करते थे। हर कबीले के प्रमुख से बुजुर्ग-सभा (council of elders) होती थी जो सर्वोच्च स्थान रखती थी। बुजुर्ग-सभा बहुत जरुरी होने पर ही इकट्ठा होती थी। कबीले के #न्यायकर्ता जिनकी कबीले के लोग संयुक्त रूप से आज्ञा मानते थे। न्यायकर्ता कोई न्यायधीश नही बल्कि पुजारी होने के अलावा प्रमुख लडाकू भी होते थे।
Source: ( Durant Will, p 303-304, The story of civilization: Our oriental heritage)
हिस्कोज (Hyksos) नामक पशु-पालन करने वाली जंगली अरब लूटेरी जनजाति ने इजिप्ट पर आक्रमण करके नाईल-घाटी पर कब्जा कर लिया। यहूदियों ने हिस्कोज जनजाति के लोगों की भरपूर मदद दी तथा आक्रमणकारी हिस्कोज के लिए कर की वसूली करने के साथ-साथ उनके अधीन नौकरी करने लगे।
लेकिन ईसा-पूर्व 1700 के बाद यहूदियों व हिस्कोज के शोषण व अत्याचार के कारण इजिप्ट के लोगों ने हिस्कोज के खिलाफ बगावत की और उन्हें अपने देश से खदेड दिया गया। यहूदियों द्वारा हिस्कोज के लोगों की मदद करने के कारण यहूदियों को भी इजिप्ट के लोगों के गुस्से का शिकार होना पडा। उनकी दशा गुलामों जैसी हो गयी। इजिप्ट के सैनिकों की निगाहों से बच निकल कर भागना भी उनके लिए सम्भव नही था। परन्तु मोजेस नामक यहूदी जो भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहने व रेगिस्तान के थपेडे सहने का आदी था, ने अपने पीछे भेजे गये सैनिकों को हराकर, यहूदियों को सीनाई-पर्वत के किनारे पहुंचाया।
मोजेस का विश्वास था कि उस पर आंधी तूफान के देवता येहवेह की मेहरबानी है। यहूदियों के अनुसार एक दिन मोजेस अपने ईश्वर के आदेश से खुदी हुई शिलापट्टी लेने पहाड़ी पर गया, जब मोजेस पहाड़ी से वापस लौट रहा था बिजली कडकने व बादल गरजने लगे, ऐसे में मोजेस ने जो शब्द सुने' वो उसने शिलापट्टी पर लिख दिये।
यहूदियों ने मोजेस को अपना ईश्वर माना। कई सालों तक भटकने के बाद यहूदी फलस्तीन की जमीन पर पहुंचे और वहाँ उन्होंने जबरदस्ती फलस्तीनियों के क्षेत्र में कब्जा किया तथा येरुशलम नाम से नगर बसाया। मोजेस अब उनका राजा नही रहा। युद्ध जैसे हालात से निपटने के लिए, उन्होंने अपना एक राजा चुना था जिसका नाम साउल (saul) हुआ ।
( Henrik Con Loo,)
Source: त्रि-इब्लिसी शोषण-व्यूह-विध्वंसp 221-222
Next parts 👇
दुनिया मे यहूदी और यहूदीवाद भाग-2
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 3
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 4
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 5
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 6
अपौरुषेय-बाणी
बाबा-राजहंस
इजिप्ट वासियों का मानना था कि मरने के बाद की जिंदगी के लिये शरीर का होना भी जरुरी है। इसी अवधारणा के कारण लाश को ममी बनाकर सुरक्षित रखने लगे।
ईसा-पूर्व बीसवीं शताब्दी में अपनी आजीविका की तलाश में भटकते हुए यहूदियों को इजिप्ट के निवासियों ने मदद दी और यहूदी इजिप्ट के गोशेन क्षेत्र में बस गये।
Source: (Hendrik-Von-Loon, story of mankind)
यहूदी कभी-भी एक राष्ट्र के रुप में नही बन पाए थे। इसलिए वे लम्बे समय तक 12 या इससे अधिक जनजातियों के रुप में इकट्ठे रहे। यहूदी किसी राज्य देश के नियम के अनुसार नही बल्कि अपने कबीले के नियम के अनुसार व्यवहार करते थे। हर कबीले के प्रमुख से बुजुर्ग-सभा (council of elders) होती थी जो सर्वोच्च स्थान रखती थी। बुजुर्ग-सभा बहुत जरुरी होने पर ही इकट्ठा होती थी। कबीले के #न्यायकर्ता जिनकी कबीले के लोग संयुक्त रूप से आज्ञा मानते थे। न्यायकर्ता कोई न्यायधीश नही बल्कि पुजारी होने के अलावा प्रमुख लडाकू भी होते थे।
Source: ( Durant Will, p 303-304, The story of civilization: Our oriental heritage)
हिस्कोज (Hyksos) नामक पशु-पालन करने वाली जंगली अरब लूटेरी जनजाति ने इजिप्ट पर आक्रमण करके नाईल-घाटी पर कब्जा कर लिया। यहूदियों ने हिस्कोज जनजाति के लोगों की भरपूर मदद दी तथा आक्रमणकारी हिस्कोज के लिए कर की वसूली करने के साथ-साथ उनके अधीन नौकरी करने लगे।
लेकिन ईसा-पूर्व 1700 के बाद यहूदियों व हिस्कोज के शोषण व अत्याचार के कारण इजिप्ट के लोगों ने हिस्कोज के खिलाफ बगावत की और उन्हें अपने देश से खदेड दिया गया। यहूदियों द्वारा हिस्कोज के लोगों की मदद करने के कारण यहूदियों को भी इजिप्ट के लोगों के गुस्से का शिकार होना पडा। उनकी दशा गुलामों जैसी हो गयी। इजिप्ट के सैनिकों की निगाहों से बच निकल कर भागना भी उनके लिए सम्भव नही था। परन्तु मोजेस नामक यहूदी जो भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहने व रेगिस्तान के थपेडे सहने का आदी था, ने अपने पीछे भेजे गये सैनिकों को हराकर, यहूदियों को सीनाई-पर्वत के किनारे पहुंचाया।
मोजेस का विश्वास था कि उस पर आंधी तूफान के देवता येहवेह की मेहरबानी है। यहूदियों के अनुसार एक दिन मोजेस अपने ईश्वर के आदेश से खुदी हुई शिलापट्टी लेने पहाड़ी पर गया, जब मोजेस पहाड़ी से वापस लौट रहा था बिजली कडकने व बादल गरजने लगे, ऐसे में मोजेस ने जो शब्द सुने' वो उसने शिलापट्टी पर लिख दिये।
यहूदियों ने मोजेस को अपना ईश्वर माना। कई सालों तक भटकने के बाद यहूदी फलस्तीन की जमीन पर पहुंचे और वहाँ उन्होंने जबरदस्ती फलस्तीनियों के क्षेत्र में कब्जा किया तथा येरुशलम नाम से नगर बसाया। मोजेस अब उनका राजा नही रहा। युद्ध जैसे हालात से निपटने के लिए, उन्होंने अपना एक राजा चुना था जिसका नाम साउल (saul) हुआ ।
( Henrik Con Loo,)
Source: त्रि-इब्लिसी शोषण-व्यूह-विध्वंसp 221-222
दुनिया मे यहूदी और यहूदीवाद भाग-2
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 3
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 4
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 5
दुनियां मे यहूदी और यहूदीवाद भाग 6
अपौरुषेय-बाणी
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