किसान आंदोलन- ऐसा आंदोलन पहली बार नही हुआ है आज से 32 साल पहले राजीव गांधी सरकार के समय भी ऐसा ही आंदोलन किया गया था, तब भी सरकार को किसानों की मांगे पूरी करनी पड़ी थी ।
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प्रदर्शनकारी किसान व पुलिस प्रशासन |
अब आते हैं आंदोलन के कारणों पर तो किसान तीन मुद्दों पर बात करते नजर आ रहे हैं जो आंदोलन का कारण हैं
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की लिखित गारंटी नही है,
- कांट्रैक्ट फार्मिंग ,
- असीमित भंडारण की अनुमत से संबंधित बातें सामने निकलकर आ रही हैं
देखा जाए तो अबतक ऊपर दिए तीनों बिंदुओ के तो इसके किसानों को नुकसान ही नुकसान हैं
वहीं गौर किया जाए तो किसानों को तो नुकसान करेंगे ही उसके बाद सीधे ही मध्यमवर्गीय पर प्रभाव डालेंगे ये तीनो बिंदु , अगर ये कानून लागू रहा तो कॉर्पोरेट सेक्टर कैसे निचोड़ेगा जनता को सोच भी नही सकते, सीधे खेत से लेकर के निवाला अन्य जनता के मुंह मे जाने तक सब निर्धारित करेंगे ये कॉर्पोरेट्स।
एक एक करके तीनों बिंदुओ पर बात करते हैं
न्यूनतम समर्थन मूल्य की लिखित गारंटी नही है।
यानि कि सीधे-सीधे ही यह किसानी असुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा है । न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी खत्म होते ही किसानों की फसल को औने पौने दामों मे बेचने पर मजबूर होना पड़ेगा फिर चाहे फसल कितनी ही अच्छी क्वालिटी का हो, बिहार, महाराष्ट्र व अन्य राज्य के किसान तो परिचित ही होंगे इससे क्योंकि मुश्किल से उनके यहां सरकारें सिर्फ 10-20% अनाज की ही खरीद करती है, और बाकी अनाज निजी क्षेत्र को औने पौने दामों मे बेचना पड़ता है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
अब आते है कांट्रैक्ट फार्मिंग पर तो इस के बहुत नुकसान है आप क्या उगाएंगे क्या नही उगाना है पूंजीपति निर्धारित करेंगे। आप अपने ही खेतों मे एक नौकर बनकर रह जाएंगे।
आपकी फसल उस क्वालिटी की जो कॉन्ट्रैक्ट मे मेंशन हो न हुई तो खेत मे पड़े पड़े सड़ जाएगी या फिर आप उसे कॉर्पोरेट को औने पौने दामों मे दे दे या सीधे कहूं तो कौणी के दामों मे बेचने पर मजबूर कर दिए जाएंगे।
यकींन न हो रहा हो तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नुकसान का तो गुजराती किसान भुगत भी चुके हैं गूगल सर्च करके देख लीजिए न्यूज भरे पड़े हैं । एक विशेष किस्म की आलू उगाने पर अन्य किसानों जो कि अपने तरीके से फसल उगा रहे थे कोर्ट मे केस करके हर्जाना देने के लिए मजबूर कर दिया था इन्ही पूजीपतियों द्वारा ।
असीमित भण्डारण
सबसे खतरे वाला बिंदु ये है, खासकर मध्यमवर्गीय के लिए "किसानों के लिए तो है ही। फसल की कटाई के समय भंडारित अनाज बाजार मे उतारकर किसान को मजबूर कर देंगे कि अधिक उपलब्धता के कारण कम दाम मे किसान अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर कर देंगे । सीधे ही खाद्य आपूर्ति को प्रभावित करेगा यह कानून। मध्यमवर्गीय के लिए बड़े खतरे की बात है । ऐसा इसलिए कि "पूंजीपति आपकी थाली मे एक निवाला कितने का होगा और कब आपकी थाली मे निवाला देना है कब नही ये भी वो ही निर्धारित करेंगे ।
मध्यमवर्गीय यह सोच रहे हैं कि उन्हें सस्ता राशन मिलेगा तो भूल जाइए असीमित भण्डारण कानून भी शामिल है इसमे, कब आपको निवाला नसीब हो, कितनी कीमत होगी या कब आपकी थाली मे पहुंचेगा इसका निर्धारण कॉर्पोरेट्स करेंगे।
आंदोलन पंजाब के ही किसान क्यों कर रहे हैं ? क्या दिल्ली मे पंजाब का अनाज बिकेगा क्या बिहार के किसानों को हक नही वहां अपनी फसल बेचने का ?
जवाब- ऐसा बिल्कुल भी नही है कि इस कानून के बाद सिर्फ पंजाब के किसान ही विरोध मे प्रदर्शन कर रहे हैं देश के हरेक कोने से किसानों ने विरोध किया है धरने दिए है। सिर्फ पंजाब ही है जिसने इसे जारी रखा है इसका बड़ा कारण भी है ।
पंजाब मे जो कृषि व्यवस्था है वह पंजाब के किसानों के संघर्ष का नतीजा है, यही वजह है पंजाब के किसान बाकी राज्यों के किसानों से अधिक साधन संपन्न हैं, जबकि बंटवारे के बाद खेती लायक भूमि पाकिस्तान के हिस्से चली गई थी वहीं उबड़ खाबड़, पथरीली भूमि वर्तमान पंजाब वासियों के हिस्से आई थी । पंजाब के किसानों की मेहनत का ही नतीजा है कि पंजाब को आज भारत का अन्न का भंडार कहा जाता है ।
नया कानून आने के बाद सबसे ज्यादा नुकसान भी पंजाब के किसानों को होने वाला है । इस बात को नीचे पढ़कर समझिए
"अब आते है दूसरी बात पर कि क्या दिल्ली मे पंजाब का ही अनाज बिकेगा या बिहार का भी ?
तो पढिए, "पंजाब के किसानों का 90% अनाज न्युनतम समर्थन मूल्य के साथ पंजाब मे ही सरकार द्वारा खरीद लिया जाता है, उन्हें कहीं और जाकर बेचने की आवश्यकता नही पड़ती है, न दिल्ली मे न ही मुम्बई जाकर बेचने जाने की आवश्यकता पड़ती है, हां आजादी भी है।
बिक्रय को लेकर के जो कानून केन्द्र सरकार लायी है वह कितना फायदेमंद होगा ?
जवाब- बिहार व बाकी राज्य यह सोच रहे हैं कि उन्हें इस कानून के बाद अपनी फसलों के अच्छे दाम मिलने लगेंगे तो वो अपनी हालत पहले ही देख लें लगभग 90% अनाज उन्हें ऐसे ही निजी क्षेत्र को बेचना पड़ता है। केवल 10-20% ही सरकार खरीदती है ।
बिहार इसका उदाहरण है,
सरकार कह रही है कि निजी क्षेत्र के आने से किसानों को लंबे समय में फायदा होगा । यह दीर्घकालिक नीति है। लेकिन, बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था तो 2006 में ही खत्म हो गई थी। 14 वर्ष बीत गए, यह लंबा समय ही है।
- अब जवाब है कि वहां कितना निवेश आया?
- वहां के किसानों को क्यों आज सबसे कम दाम पर फसल बेचनी पड़ रही है?
- अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी तो मजदूरों के पलायन का सबसे दर्दनाक चेहरा यहीं क्यों दिखा?
- क्यों नहीं बिहार कृषि आय में अग्रणी राज्य बना?
- क्यों नहीं वहां किसानों की आत्महत्याएं रुकीं ?
मंडियों मे सुधार की बात करती है केंद्र सरकार ।
- देखा जाए तो एपीएमसी के तहत देश मे 40000 मंडियों की जरूरत है । और सिर्फ 7000 मंडियाँ ही मौजूद हैं देश मे ।
- सरकार नई मंडियों को लाने की बजाय मंडियां खत्म कर रही है। क्या यह मंडियों मे सुधार कर रहे हैं ?
एक बात और कि एक यही सेक्टर बचा हुआ था जिसको केंद्र सरकार द्वारा कॉर्पोरेट के हवाले इस तरह से किया गया है ।
जैसे रेलवे, हवाईजहाज, इंटरनेट कनेक्टिविटी वगैरह कॉर्पोरेट्स के हवाले किया गया या धीरे धीरे किया जा रहा है,
दूसरी ओर अब पूंजीपतियों को अपनी बैंक खेलने की इजाजत भी दी जा रही है वही दूसरी ओर सरकारी बैंक भी एक के बाद एक निजी क्षेत्र को सौंपी जा रही हैं।
सीधे तौर पर देखा जाए तो आपको सीधे ही बड़े उद्योगपतियों अदानी, अम्बानी,टाटा( मॉडर्न ईस्ट इंडिया कम्पनीज़ ) के हवाले किया जा रहा है ।
आखिर मे यह इसलिए लिख रहा हूं कि पुरानी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने लगभग २०० साल तक आपको व्यापार के बल पर ही शुरू किया और गुलाम बनाए रखा
अब इन मॉडर्न ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ आप भारत छोड़ो आंदोलन भी नही कर सकते, यही वजह वो वजहें हैं ।जिस कारण किसान सड़कों पर हैं। और करोड़ों लोग किसानों का समर्थन कर रहे हैं,
यहां एक और बात साफ दिख रही है कि सरकार बाकी क्षेत्रों की तरह यहां भी जिम्मेदारियों से भाग रही है। साफ है सरकार की मंशा किसान व अन्य का भला करना है ही नही ।
नोट- विचार आमंत्रित है सुधार व जोड़ने के लिए।
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